बुंदेलखंड: बंजर भूमि, सियासी जमीन

यूपी विधानसभा के प्रथम दो चरणों के पश्चात अब बुंदेलखंड में सियासी बिसात बिछ चुकी है। यहां विधानसभा की 19 सीटें आती हैं, जिन पर वर्तमान में सभी सीटों पर सत्तारूढ़ पार्टी का कब्जा है। बुंदेलखंड में मतदाताओं के जातिगत आंकड़े देखें तो 27 फीसदी सामान्य, 43 फीसदी पिछड़े एवं 21 फीसदी हरिजन मतदाता रहते हैं। लगभग 1 करोड़ मतदाता क्षेत्र वाला बुंदेलखंड क्षेत्र आज भी विकास की मुख्यधारा से जुड़ नहीं सका है। यहाँ कृषि योग्य भूमि का अभाव तथा जल प्रबंधन सही ना होने के वजह से लोग मजदूरी पर आश्रित हैं, और मजदूर कल कारखानों के अभाव में महानगरों में पलायन करने को मजबूर हैं। अभी कोरोना काल में सूटकेस से बच्चे को लटकाये सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलने को मजबूर महोबा की महिला की तस्वीर पलायन की हकीकत से रूबरू करा रही थी। आज भी हम जब सूखा, किसान आत्महत्या, बदहाली, बेरोजगारी और पलायन जैसे शब्दों को सुनते हैं तो स्वतः ही बुंदेलखंड की तस्वीर हमारे मन और मस्तिष्क में तैरने लगती है।

बुंदेलखंड स्वतंत्रता प्राप्ति पश्चात कांग्रेस का गढ़ समझा जाता था, लेकिन 1984 के पश्चात कांग्रेस की पकड़ यहाँ निरन्तर कमजोर होती चली गयी। इसके पश्चात क्रमशः बसपा और सपा ही मुख्य प्रतिद्वंद्वी बनकर उभरी थी। 2012 के विधानसभा चुनाव में जहाँ बसपा और सपा को 7-7 सीटें मिली, वहीं भाजपा को सिर्फ एक सीट से ही संतोष करना पड़ा था। लेकिन 2017 में भाजपा ने अन्य दलों का सूपड़ा ही साफ कर दिया। वर्ष 2016 में यहाँ वाटर ट्रेन का भेजा जाना एवं एक मीडिया रिपोर्ट में यहां घाँस की रोटियां खाने को मजबूर परिवार की तस्वीर ने यहाँ के विकास के सारे दावे खोखले साबित कर दिये थे। वर्ष 2009 में तत्कालीन यूपीए नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने यहां के विकास के लिये 7400 करोड़ का विशेष बुंदेलखंड पैकेज दिया था। जिसे तालाब पुनरुद्धार, कुंये, चैकडैम निर्माण, दूध डेयरियां, नलकूप योजना, कृषि उत्पादन मंडीयां में खर्च किया जाने का प्रस्ताव तैयार किया गया, लेकिन बाद में पता चला कि बुंदेलखंड पैकेज तो बकरियां ही खा गयीं।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यूपी की कमान संभालते ही बुंदेलखंड को मुख्य विकास की धारा से जोड़ने का खाका तैयार कर लिया था। सड़क से लेकर औद्योगिक विकास तक की योजना यहाँ प्रस्तावित है। 14716 करोड़ की लागत से बन रहा बुंदेलखंड एक्सप्रेस वे हो या औद्योगिक गलियारा और डिफेंस मैनुफैक्चरिंग कॉरिडोर जैसे बड़े बड़े विकास परियोजना प्रस्ताव हों। इसके साथ ही झांसी की गरौठा तहसील के जलालपुर एवं जसवन्तपुरा में 3000 एकड़ में प्रस्तावित अल्ट्रामेगा सोलर पावर ग्रिड का भी यहां रास्ता साफ हो गया है। कृषि सिंचाई हेतु जहाँ केन-बेतवा लिंक परियोजना पर काम हो ही रहा है। बुंदेलखंड की प्यासी धरती को स्वच्छ पेयजल आपूर्ति हेतु 10 हजार 131 करोड़ की लागत से हर घर नल योजना हेतु बजट भी उपलब्ध करा दिया गया हैं। वहीं चित्रकूट धाम मण्डल में जैविक खेती के प्रोत्साहन हेतु योजना तैयार करने के लिये मुख्यमंत्री जी द्वारा निर्देश दिये गए हैं। तमाम प्रस्तावित योजनाओं के बावजूद धरातल पर ना तो अभी तक डिफेंस कॉरिडोर उतर पाया है, ना ही झांसी की हवाई अड्डा नजर आ रहा है। झांसी मेट्रो का तो अभी तक डीपीआर ही नहीं बन सका है। वहीं बुंदेलखंड एक्सप्रेस वे बुंदेलखंड के केंद्र बिंदु झांसी को छुए बिना ही चित्रकूट से इटावा निकल गया है। झांसी के एरच बांध का निर्माण रुका हुआ है तो सूती मिल सालों से बंद पड़ी है।

बुंदेलखंड में वैसे तो भाजपा और सपा में ही सीधी लड़ाई नजर आ रही है, लेकिन बसपा के प्रभाव से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। वर्ष 2007 के चुनाव में सर्वाधिक 15 सीटें एवं साल 1989 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने सर्वाधिक 12 सीटें जीतकर अपनी मौजूदगी से अवगत कराया था, वहीं 2012 में भी अपने कोर वोटबैंक के दम पर सर्वाधिक 7 सीटें जीतकर सभी विरोधियों को शांत कर दिया था। अब परिस्थितियों में अब काफी परिवर्तन आया है। जहाँ अब नसीमुद्दीन सिद्दीकी, दद्दू प्रसाद और बाबू सिंह कुशवाहा जैसे प्रभावशाली नेता बसपा के साथ नहीं है। सपा ने भी 2012 के विधानसभा चुनाव हो या अभी हाल के जिला पंचायत चुनाव में अपने अधिक से अधिक सदस्यों को जिताकर बुंदेलखंड में अपनी मौजूदगी के पुख्ता सबूत दे दिए हैं, पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव यहाँ से विजय यात्रा निकाल चुके हैं। उन्होंने कृषि सिंचाई को मुफ्त एवं प्रत्येकघरेलू कनेक्शन धारक को 300 यूनिट फ्री बिजली प्रदान करने का दावे के साथ गरीबी व भुखमरी दूर करने का वादा किया है। कांग्रेस यहाँ कृषि विश्वविद्यालय, मेडिकल कॉलेज, प्रमुख बांध, प्रमुख ट्रेनों के ठहराव को अपनी प्रमुख उपलब्धि आज भी बतलाती है।वहीं बुंदेलखंड में आम आदमी पार्टी एवं एआईएमआईएम की मौजूदगी ने भी सभी प्रमुख दलों को चिंतित कर दिया है।

बुंदेलखंड में प्राकृतिक संसाधनों का कोई अभाव नहीं है, लेकिन इनका बेतहाशा दोहन ही प्रमुख समस्या है। यहाँ मोरम खनन व सत्ता संरक्षित रेतमाफिया सरकार को राजस्व की क्षति पहुँचाकर करोडों के बारे न्यारे हो रहे हैं। बुंदेलखंड में पलायन, बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल और एमएसएमई उद्योगों का नितांत अभाव अहम मुद्दा हैं। अब देखना दिलचस्प होगा कि मतदाता किसको अपना भाग्यविधाता चुनते हैं।

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