सोच समझकर चुनें अपना प्रतिनिधि

गांव की सरकार बन जाने के बाद अब शहर की सरकार को चुनने की दरकार आन पड़ी है। शहर की गली-गली, कोना-कोना पोस्टर, बैनर से सजा-धजा पड़ा है। सारे पहलवान अपनी -अपनी ताल ठोंक रहे है, इसके साथ ही अपने जीवन भर की कमाई और स्वयं को भी निवेश करने से पीछे नहीं हट रहे हैं। वहीं पिछले दिनों घोषित आरक्षण ने कुछ रंगीन सपने संजोये पुराने दावेदारों का अंकगणित बिगाड़ दिया तो नये-नये सूरमाओं का बीजगणित अंकुरित कर दिया है। अब देखना मजेदार होगा कि किसके भाग्य में कौन सी भाग संख्या से कौन भाग रहा है, कौन पीछे छूट रहा है।

ऐसा देखा गया है कि निकाय की राजनीती में कुछ लोग तो समाज सेवा के लिए प्रतिनिधि बनना चाहते हैं, वहीं कुछ लोग सिर्फ नाम पट्टीका खातिर जोड़-तोड़ करते रहते हैं। उन्हें सिर्फ स्टेटस सिंबल की दरकार रहती है। वो जो जिनकी गाड़ी के शीशे इसलिए बंद रहते थे कि कहीं धूल गाड़ी में प्रवेश ना कर जाये, वो भी आज गली-गली धूल फांक रहे हैं। एकमत कहें तो सभी अपने वोटों की गणित में मशगूल है।

चूँकि क्षेत्रीय चुनाव है, अतः मुद्दे भी सीधे जनसरोकार से सम्बंधित है। आवास, राशन, पेंशन, बिजली, सड़क, साफ-सफाई एवं नाली प्रमुख मुद्दे है तो आपके पूर्व के प्रमुख जनसेवी कार्य प्रतिनिधि चुनने के मापदंड है। कोरोनाकाल में लोंगो ने जिंदगी और मौत के बीच के भयावह दिन देखें है, तो राशन और शासन के बीच भी खुद को झूझता हुआ महसूस किया है। इनमें कुछ खुद की जान बचाने को कमरों में दुबक गये थे तो कुछ हरसंभव मदद के लिए सहारा बन खडे भी हुए हैं। किसी ने स्वार्थवश मदद की तो कोई संकट के समय संकटमोचक भी बना है।

लोकल चुनाव है तो एक-एक वोट भी कीमती है। किसी के वोट की कीमत दारू का पौआ है, तो किसी के लिए पूड़ी सब्जी हलुआ है। लेकिन इन सबमें वो अभिमानी भी है, जिनका स्वाभिमान ही सबकुछ है, उन्हें कुछ नहीं चाहिए लेकिन वो अपना अमूल्य वोट एक अच्छे प्रत्याशी को अवश्य देंगे। इस चुनाव में पैसा पानी की तरह बहता है, वहीं चुनाव के बाद मतदाता पानी के लिए भी तरसता है। इसलिए मेरा सभी से निवेदन है कि अपने-अपने वार्ड से ईमानदार, कर्मठ, लगनशील, शिक्षित एवं समाजसेवी प्रत्याशी को चुननें घर से अवश्य निकलें और मतदान जैसे महापर्व के सहभागी बनें।

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