टूटते रिश्ते

आज के इस समाज में वैवाहिक संबंध जहाँ परिवारों को जोड़ने के लिये बनाये गए हैं, वहीं अपवादस्वरूप कुछ दुष्परिणाम भी सामने आ रहे हैं। शादी उपरांत युगल मां बाप को त्यागकर अपनी अलग ही दुनिया बसा ले रहें है। वहीं कुछ रिश्ते जुड़ने से पहले ही टूटे जा रहे हैं। अध्ययन करेंगे तो पता चलेगा कि इन सम्बन्धों में कुछ सामाजिक आकांक्षाएं ना सिर्फ रिश्ते तोड़ दे रहीं हैं वरन उस युगल को भी झकझोर दे रहीं हैं, जो इन सम्बन्धों में बंधने वाला होता है। जहां वर पक्ष के लोग स्वयं को वरीय मान लेते हैं तो वधू पक्ष स्वयं को स्वाभिमानी समझकर रिश्तों को झटका देते हैं, जिससे नुकसान उस युगल को पहुंचता है, जो सात जन्मों के बंधन में बंधने वाला होता है। कहते हैं रिश्ते भगवान बनाता है, और हम सिर्फ उसको मिलाते हैं, लेकिन एक वास्तविकता ये भी है कि बिटिया के माता-पिता सुयोग्य वर हेतु अक्सर बेरोजगार लड़के के बजाय सरकारी नौकरी वाले लड़के को वरीयता देते हैं, क्योंकि इसे रोज उतार चढ़ाव वाले बाजार में सुरक्षित निवेश समझा जाता है। ये भी एक प्रक्रिया का हिस्सा है कि सम्बन्धों से पहले लड़के और लड़की के गुण मिलाये जाते हैं। लेकिन इस प्रक्रिया में प्रतिक्रिया की जगह छोड़ दी जाती है और उन पारिवारिक सदस्यों के गुण नहीं मिलाये जाते हैं, जिनके निर्णयानुसार ही ये पारिवारिक संबंध आगे बढ़ना होते है। लड़का-लड़की परिस्थितिवश सामन्जस्य बैठा भी लेते है, लेकिन वो कैसे सामंजस्य बैठाएंगे जो सामाजिक संकीर्णताओं में बंधे होते हैं, सामाजिक प्रतिष्ठा जहाँ प्रश्न चिन्ह बन जाती हैं। आज जहां दहेज(उपहार) अभिशाप है का स्लोगन बड़े बड़े अक्षरों में लिखा हुआ दिखता हैं वहीं हम एक ऐसे समाज मे जी रहे हैं, जहाँ बिटिया के भविष्य की चिंता सिर्फ सरकार नौकरी वाले लड़के को ढूंढकर दूर कर ली जाती है।

संबंधों का सागर विशाल है। एक कुशल नाविक वही है, जो तमाम हिचकोलों के बावजूद इस सागर में अपनी नाव पार ले जाकर ही माने और जब भी इस सागर में डुबकी लगाए, तो संबंधों का सबसे कीमती मोती निकालकर ही बाहर लाए। वह न केवल उसे निकाले, बल्कि उसे सहेजकर भी रख सके, उसकी हिफाजत भी करे, और उसका सम्मान भी करे, तभी नाविक की उपयोगिता सार्थक सिद्ध होगी। वूडी एलेन ने संबंधों की दुनिया पर काफी गहरा अध्ययन किया। उन्होंने स्त्री-पुरुष के संबंध की तुलना शार्क से की है। वह कहते हैं, शार्क की ही तरह किसी रिश्ते को आगे बढ़ते रहना चाहिए, नहीं तो उसके दम तोड़ने की गुंजाइश हमेशा बनी रहती है। इसी तरह, मार्टिन लूथर किंग ने कहा था- एक सफल विवाह से प्यारा दोस्ताना रिश्ता और कोई  नहीं हो सकता है, लेकिन आधुनिक जीवन में सफल विवाह के कुछ बड़े शत्रु उभरकर सामने आए वह हैं- ईगो, दंभ और घमंड। इन तीनों के अर्थ में कुछ भेद जरूर हैं, लेकिन इनकी आत्मा एक है। इनका वार एक सा है और उनका असर भी एक सा ही होता है। जब तक ये तीनों जिंदा हैं, सफल विवाह भी दम तोड़ता नजर आता है। हम अपनी ईगो के चलते विवाह जैसे खूबसूरत रिश्ते की बलि चढ़ाने में भी नहीं हिचकते हैं। इसके उलट अगर ईगो को ही बलिवेदी पर चढ़ा दिया जाए, तो विवाह जैसे संबंध हमारे जीवन में नई रोशनी भर सकते हैं। ईगो को टक्कर देने के लिए हमारे पास प्यार और त्याग रूपी हथियार हैं, क्योंकि अगर प्यार है, तो त्याग अवश्य होगा… और यदि त्याग है, तो रिश्ता कभी टूट ही नहीं सकता है, बल्कि वह मिठास से हमेशा भरा रहेगा। प्रत्येक इंसान देर-सबेर किसी न किसी संबंध में बंधता अवश्य है, और यह संबंध जितना गहरा होता है, उसका जीवन उतना ही संतुष्टि से भरपूर रहता है।

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