कोरोनिल कोई कोरोना की दवा नहीं!

कोरोना वायरस की वैक्सीन बनाने का जो काम अब तक पूरी दुनिया नहीं कर सकी है, उसे बना लेने का दावा बाबा रामदेव और उनकी संस्था पतंजलि आयुर्वेद ने किया है। बाबा रामदेव ने पिछले दिनों मीडिया के सामने दावा किया कि पतंजलि ने कोरोना वायरस को हराने वाली दवा बना ली है, जो एक हफ्ते के अंदर मरीजों को सौ फीसदी ठीक कर देगी। लेकिन देश के लोगों के लिए यह खबर सुकून देने के बजाय अचंभित करने वाली ज्यादा हो गयी है। जहां बाबा ने बताया कि उन्होंने इस दवा को बनाने के लिए पूरी निर्धारित प्रक्रिया का पालन किया है वहीं उत्तराखंड के आयुष विभाग के लाइसेंस ऑफिसर के अनुसार पतंजलि को सिर्फ इम्युनिटी बूस्टर, खांसी और बुखार की दवा बनाने का ही लाइसेंस जारी किया गया था। लाइसेंस ऑफिसर ने स्पष्ट कहा कि अनुमति लेते समय पतंजलि ने कोरोना वायरस का जिक्र ही नहीं किया था।

सामान्य परिस्थितियों में किसी दवा को विकसित करने और उसका क्लिनिकल ट्रायल पूरा होने में कम से कम तीन साल तक का समय लगता है लेकिन अगर स्थिति अपातकालीन हो तो भी किसी दवा को बाज़ार में आने में कम से कम दस महीने से सालभर तक का समय लग जाता है।

भारत में किसी दवा या ड्रग को बाज़ार में उतारने से पहले किसी व्यक्ति, संस्था या स्पॉन्सर को कई चरणों से होकर गुज़रना होता है। इसे आम भाषा में ड्रग अप्रूवल प्रोसेस कहते हैं। अप्रूवल प्रोसेस के तहत, क्लिनिकल ट्रायल के लिए आवेदन करना, क्लिनिकल ट्रायल कराना, मार्केटिंग ऑथराइज़ेशन के लिए आवेदन करना और पोस्ट मार्केटिंग स्ट्रेटजी जैसे कई चरण आते हैं। भारत में किसी दवा के अप्रूवल के लिए सबसे पहले इंवेस्टिगेशनल न्यू ड्रग एप्लिकेश यानी आईएनडी को सीडीएससीओ के मुख्यालय में जमा करना होता है। इसके बाद न्यू ड्रग डिवीज़न इसका परीक्षण करता है। इस परीक्षण के बाद आईएनडी कमिटी इसका गहन अध्ययन और समीक्षा करती है। इस समीक्षा के बाद इस नई दवा को ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ़ इंडिया के पास भेजा जाता है। अगर ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ़ इंडिया, आईएनडी के इस आवेदन को सहमति दे देते हैं तो इसके बाद कहीं जाकर क्लिनिकल ट्रायल की बारी आती है।क्लिनिकल ट्रायल के चरण पूरे होने के बाद सीडीएससीओ के पास दोबारा एक आवेदन करना होता है। यह आवेदन न्यू ड्रग रजिस्ट्रेशन के लिए होता है। एक बार फिर ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ़ इंडिया इसे रीव्यू करता है। अगर यह नई दवा सभी मानकों पर खरी उतरती है तो कहीं जाकर इसके लिए लाइसेंस जारी किया जाता है, लेकिन अगर यह सभी मानकों पर खरी नहीं उतरती है तो डीसीजीआई इसे रद्द कर देता है। इसके साथ ही देश के हर राज्य में स्टेट ड्रग कंट्रोलर होते हैं। जो अपने राज्य में दवा के मैन्युफैक्चर के लिए लाइसेंस जारी करते हैं। जिस राज्य में दवा का निर्माण होना है, वहां स्टेट ड्रग कंट्रोलर से अप्रूवल लेना होता है।

भारत में किसी नई दवा के लिए अगर लाइसेंस हासिल करना है तो कई मानकों का ध्यान रखना होता है। यह सभी मानक औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम 1940 और नियम1945 के तहत आते हैं। इसके लिए ये भी समझना ज़रूरी है कि नई दवा दो तरह की हो सकती है। एक तो वो जिसके बारे में पहले कभी पता ही नहीं था। इसे एनसीई कहते हैं, ये एक ऐसी दवा होती है जिसमें कोई नया केमिकल कंपाउंड हो। दूसरी नई दवा उसे कहा जाता है जिसमें कंपाउंड तो पहले से ज्ञात हों लेकिन उनका फ़ॉर्मूलेशन अलग हो। मसलन जो दवा अभी तक टैबलेट के तौर पर दी जाती रही उसे अब स्प्रे के रूप में दिया जाने लगा हो।

अंग्रेज़ी दवा और आयुर्वेंद के लिए अप्रूवल मिलने में अंतर बहुत अधिक नहीं है, लेकिन आयुर्वेद में अगर किसी प्रतिष्ठित किताब के अनुरूप कोई दवा तैयार की गई है तो उसे आयुष मंत्रालय तुरंत अप्रूवल दे देगा। जबकि एलोपैथ में ऐसा नहीं है। यह भी एक वजह है पतंजलि द्वारा कोरोना रोकथाम के नाम पर इम्यूनिटी बूस्टर वाली दवा इतनी जल्दी तैयार कर ली गयी है। आयुर्वेद प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति है, जिसमें किसी जड़ी-बूटी को किस मात्रा में, किस रूप में और किस इस्तेमाल के लिए अपनाया जा रहा है सबका लिखित ज़िक्र है। ऐसे में अगर कोई ठीक उसी रूप में अनुपालन करते हुए कोई औषधि तैयार कर रहा है तब तो ठीक है, लेकिन अगर कोई काढ़े की जगह टैबलेट बना रहा है और मात्राओं के साथ हेर-फेर कर रहा है, तो उसे सबसे पहले इसके लिए रेफ़रेंस देना होता है। आयुर्वेद भी अधिनियम 1940 और नियम 1945 के ही मानकों पर ही काम करता है, लेकिन कुछ मामलों में ये एलोपैथ से अलग है। मसलन अगर आप किसी प्राचीन और मान्य आयुर्वेद संहिता को आधार बनाकर कोई दवा तैयार कर रहे हैं तो आपको क्लिनिकल ट्रायल में जाने की ज़रूरत नहीं है, लेकिन अगर आप उसमें कुछ बदलाव कर रहे हैं या उसकी अवस्था को बदल रहे हैं और बाज़ार में उतारना चाहते हैं तो कुछ शर्तों को पूरा करने के बाद ही आप उसे बाज़ार में ला सकेंगे। ऐसा नहीं है कि किसी ने कुछ भी बनाया और मुनाफे के लिए बाज़ार में बेचने लगा।

One thought on “कोरोनिल कोई कोरोना की दवा नहीं!

  1. Respected sir tell me why the agriculture land short in naksha according khata book. And how it manage, and how much time taken in this process.

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